ऐसी दरियादिली रतन टाटा ही दिखा सकते हैं! पैसे देकर बचा ली 115 कर्मचारियों की नौकरी

Ratan Tata: जब भी भरोसे की बात आती है, लोग आंख मूंदकर टाटा पर भरोसा कर लेते हैं. जितना भरोसा लोग इस कंपनी पर करते हैं, उतना ही रतन टाटा पर. रतन टाटा के लिए लोगों का सम्मान दिल से आता है, आए भी क्यों नहीं अपनी दरियादिली और परोपकार के लिए वो मशहूर ह

4 1 15
Read Time5 Minute, 17 Second

Ratan Tata: जब भी भरोसे की बात आती है, लोग आंख मूंदकर टाटा पर भरोसा कर लेते हैं. जितना भरोसा लोग इस कंपनी पर करते हैं, उतना ही रतन टाटा पर. रतन टाटा के लिए लोगों का सम्मान दिल से आता है, आए भी क्यों नहीं अपनी दरियादिली और परोपकार के लिए वो मशहूर है. एक ओर जहां बड़ी-बड़ी कंपनियां पैसे बचाने के लिए बिना कर्मचारियों के बारे में सोचे छंटनी कर देती है तो वहीं रतन टाटा ने उन कर्मचारियों की नौकरी बचा ली, जिन्हें कंपनी ने बाहर का रास्‍ता दिखा दिया था.

रतन टाटा ने बचा ली नौकरियां

रतन टाटा ने भले ही अमीरों की लिस्ट में शामिल न हो, लेकिन लोगों के लिए वो दिल खोलकर पैसे खर्च करने से पीछे नहीं हटते. ऐसा ही कुछ टाटा इंस्‍टीट्यूट ऑफ सोशल सांइसेज ( TISS) के कर्मचारियों के साथ हुआ. फंड की कमी से जूझ रही टाटा इंस्‍टीट्यूट ऑफ सोशल सांइसेज ने 28 जून को 115 कर्मचारियों की छंटनी करने का ऐलान कर दिया. 55 फैकल्‍टी मेंबर्स और 60 नॉन टीचिंग स्‍टाफ की नौकरी पर संकट मंडराने लगा, लेकिन 30 जून को अचानक उनकी छंटनी रोक दी गई.

रतन टाटा ने की मदद

कर्मचारियों की छंटनी रोकने के लिए रतन टाटा की अगुवाई वाले टाटा एजुकेशन ट्रस्‍ट (TET) के टीआईएएएस को आर्थिक अनुदान बढ़ाने का फैसला किया है.रतन टाटा ने पैसे देकर 115 कर्मचारियों की नौकरी बचा ली. रतन टाटा की मदद के बाद उन कर्मचारियों का टर्मिनेशनल वापस लिया गया. आर्थिक दिक्कत झेल रही TISS को टाटा ट्रस्ट से फंड देने का ऐलान किया. ट्रस्ट ने TISS के प्रोजेक्‍ट, प्रोग्राम और नॉन टीचिंग स्‍टॉक की सैलरी और अन्‍य खर्चों को लेकर नया फंड जारी कर दिया. इस फंड की वजह से 115 कर्मचारियों की नौकरी बच गई.

88 साल पुराना संस्थान आर्थिक संकट में

टाटा समूह की टाटा इंस्‍टीट्यूट ऑफ सोशल सांइसेज ( TISS) की शुरुआत साल 1936 में की गई. सर दोराबजी टाटा ने इसका नाम टाटा ग्रेजुएट स्‍कूल ऑफ सोशल वर्क रखा था, लेकिन साल 1944 में इसका नाम बदलकर टाटा इंस्‍टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज रख दिया. इस संस्‍थान को तब बड़ी सफलता मिली जब साल 1964 में इसे डीम्‍ड यूनिवर्सिटी का दर्जा मिल गया. टाटा के इस संस्‍थान में ह्यूमन राइट्स, सोशल जस्टिस और डेवलपमेंट स्‍टडीज की पढ़ाई में बड़ी सफलता हासिल की है. लेकिन बीते कुछ सालों से ये फंड की कमी से जूझ रही है.

स्वर्णिम भारत न्यूज़ हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं.

मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Laptops | Up to 40% off

अगली खबर

IAS S Siddharth: स्कूलों में बेंच-डेस्क की क्वालिटी से समझौता नहीं! शिक्षा विभाग के ACS ने दे दी आखिरी चेतावनी

राज्य ब्यूरो, पटना। राज्य के सरकारी विद्यालयों में निम्न गुणवत्ता वाले बेंच-डेस्क की आपूर्ति करने वाले एजेंसियों पर सरकार सख्त कदम उठाने जा रही है। शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव डॉ. एस.सिद्धार्थ ने चेतावनी देते हुए बुधवार को आदेश दिया कि विद्याल

आपके पसंद का न्यूज

Subscribe US Now